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अदालत ने भर्ती दिशानिर्देशों में छूट के अनुरोध वाली याचिका खारिज की, कहा : हस्तक्षेप की गुंजाइश कम

कोलकाता, दो जनवरी (भाषा) कलकत्ता उच्च न्यायालय ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) में कांस्टेबल के तौर पर चयन के लिए एक अभ्यर्थी की याचिका खारिज कर दी है, जिसकी ऊंचाई निर्धारित ऊंचाई से कम थी।

अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में शारीरिक मानक परीक्षा (पीएसटी) परिणाम में हस्तक्षेप की गुंजाइश बहुत सीमित है।

न्यायमूर्ति अरिंदम मुखर्जी ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि अदालत को शारीरिक मानक परीक्षा (पीएसटी) के परिणाम में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता, जिसका अनुरोध याचिकाकर्ता ने किया है।

न्यायमूर्ति मुखर्जी ने कहा कि ऐसी स्थिति में पीएसटी परिणाम में हस्तक्षेप की गुंजाइश बहुत सीमित है और यह सावधानी से किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता चयन प्रक्रिया और समीक्षा परीक्षा, दोनों में ऊंचाई की आवश्यकता के आधार पर असफल रहा है।

हारुन मिया ने अपनी याचिका में अनुरोध किया था कि 2024 की भर्ती परीक्षा के लिए रोजगार नोटिस के अनुसार सीएपीएफ में कांस्टेबल (सामान्य ड्यूटी) की भर्ती प्रक्रिया में उसे शामिल करने पर विचार किया जाए। पीएसटी में याचिकाकर्ता की ऊंचाई 169.4 सेंटीमीटर पायी गई।

हारुन मिया के वकील ने दावा किया कि मई 2015 में प्रकाशित सीएपीएफ और असम राइफल्स में भर्ती मेडिकल जांच के दिशानिर्देशों के अनुसार, जिस अभ्यर्थी की ऊंचाई रोजगार सूचना में दी गई न्यूनतम ऊंचाई से कम है, उसे पीएसटी के लिए निर्धारित न्यूनतम ऊंचाई से 0.5 सेंटीमीटर का लाभ दिया जाएगा।

रोजगार सूचना में कहा गया है कि न्यूनतम ऊंचाई 170 सेंटीमीटर है।

उन्होंने कहा कि ऐसे नियम के मद्देनजर याचिकाकर्ता को ऊंचाई के आधार पर खारिज करने के बजाय पीएसटी में सफल घोषित किया जाना चाहिए था और अगले चरण यानी शारीरिक दक्षता परीक्षा के लिए भेजा जाना चाहिए था।

अदालत ने हाल में दिए अपने फैसले में कहा कि अगर छूट पर विचार किया जाए तो भी याचिकाकर्ता की ऊंचाई कम है।

याचिकाकर्ता के अनुरोध का विरोध करते हुए केंद्र सरकार के वकीलों ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उल्लेखित 2015 के दिशा-निर्देश पीएसटी चरण में लागू नहीं हो सकते, क्योंकि ऐसे दिशा-निर्देशों की प्रस्तावना में कहा गया है कि यह केवल भर्ती के लिए मेडिकल जांच की खातिर दिशानिर्देश है।

उन्होंने यह भी कहा कि ऊंचाई में छूट केवल अनुसूचित जनजातियों या कुछ अन्य श्रेणियों के मामले में दी जा सकती है। वकीलों ने कहा कि याचिकाकर्ता को छूट नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि इससे विवाद पैदा होने की आशंका है।

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