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Yellow Taxis of Kolkata: कोलकाता की सड़कों से क्यों गायब होने जा रहीं पीली टैक्सियां? ट्राम के बाद इतिहास बनेगी ‘लाइफलाइन’

कोलकाता की पहचान से जुड़ी पांच खास चीजें हैं- विक्टोरिया मेमोरियल, हावड़ा ब्रिज, रसगुल्ले, ट्राम, और पीली टैक्सी। इनमें से एक चीज, जो कोलकाता के लोगों के दिल के बेहद करीब है और अब उनसे दूर होने वाली है, वह है- पीली टैक्सी।

इस साल सितंबर में पश्चिम बंगाल सरकार ने कोलकाता की ऐतिहासिक ट्राम को बंद करने का फैसला किया था। कोलकाता में ट्राम 1873 में शुरू की गई थी और इसका 150 साल का सफर यहां के लोगों के साथ रहा है।

कोलकाता के लोगों के जीवन में पीली टैक्सियों की गहरी छाप है। परिवार या दोस्तों के साथ सफर के दौरान, इन टैक्सियों के साथ बहुत सारी यादें जुड़ी हैं। लेकिन अब जब ये सड़कों पर कम होती जाएंगी तो यकीनन लोग इन्हें मिस करेंगे। पीली टैक्सियां सिर्फ यहां से वहां आने-जाने का साधन नहीं हैं बल्कि कोलकाता की आत्मा का हिस्सा हैं, जिनकी कमी कोलकाता के हर दिल को खलेगी।

मार्च, 2025 तक लगभग 80% पीली टैक्सियां कोलकाता की सड़कों से हट जाएंगी। ऐसा इस वजह से हो रहा है क्योंकि इन टैक्सियों का 15 साल का सर्विस पीरियड पूरा होने वाला है। इसलिए राज्य के परिवहन विभाग ने प्रदूषण नियंत्रण के मकसद से यह फैसला लिया है। चूंकि इन टैक्सियों का प्रोडक्शन बंद हो चुका है इसलिए 2027 तक इन एंबेसडर टैक्सियों के कोलकाता शहर की सड़कों से गायब होने की बात भी कही जा रही है।

बताना होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में आदेश दिया था कि 15 साल से ज्यादा पुराने वाहनों को सड़कों से हटा दिया जाए। इस वजह से 7000 से ज्यादा पीली टैक्सियां कोलकाता की सड़कों पर नहीं दिखाई देंगी। एंबेसडर मॉडल की इन पीली टैक्सियों से कोलकाता के लोगों का इमोशनल नाता है। कोलकाता के पुराने हिस्सों में ये टैक्सियां शान से दौड़ती रही हैं।

किसने बनाई ये पीली टैक्सी?

1958 में हिंदुस्तान मोटर्स ने कोलकाता से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित अपने कारखाने में इन एंबेसडर कार को बनाना शुरू किया। यह कार 1956 मॉरिस ऑक्सफ़ोर्ड सीरीज़ III पर आधारित थी और इसे ब्रिटिश ऑटोमोटिव डिजाइनर सर अलेक्जेंडर इस्सिगोनिस ने डिजाइन किया था। अपनी मजबूत बॉडी और बड़े इंटीरियर की वजह से, एंबेसडर जल्द ही भारत की सबसे लोकप्रिय कारों में से एक बन गई। यह न केवल एक स्टेटस सिंबल थी, बल्कि सरकारी अफसरों की पहली पसंद भी थी।

अपनी मजबूती की वजह से जल्द ही लोगों के बीच लोकप्रिय हो गई और इसे शहर के पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम में शामिल किया गया। कुछ ही सालों में इसने फिएट जैसे दिग्गज प्रतिद्वंद्वियों को पीछे छोड़ दिया। पिछले कुछ सालों में ऐप बेस्ड कैब और कोरोना महामारी ने इन टैक्सियों को चलाने वालों के लिए मुश्किल हालात पैदा किए थे लेकिन उससे पहले कोलकाता के लोगों के लिए यह टैक्सी सिर्फ एक जगह से दूसरी जगह जाने का जरिया नहीं थी बल्कि इससे कहीं ज्यादा थी।निकाय चुनाव में किया बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन। (Source-PTI)

1962 में कलकत्ता टैक्सी एसोसिएशन ने एंबेसडर को दो रंगों में स्टैंडर्ड टैक्सी मॉडल के रूप में पेश किया। शहर में आने-जाने के लिए पीला और काला तथा इंटर सिटी यात्रा के लिए पीला। 1994 में पश्चिम बंगाल की तत्कालीन वामपंथी सरकार के मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने “ऑल बंगाल परमिट” जारी किया।

सुप्रीम कोर्ट का आया आदेश

पीली टैक्सियों का यह सफर शानदार ढंग से आगे दौड़ रहा था लेकिन 2009 में इसे पहला झटका लगा। उस साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट की ग्रीन बेंच ने आदेश दिया कि ऐसे कॉमर्शियल वाहन जो 15 साल से ज्यादा पुराने हो चुके हैं, उन्हें स्क्रैप कर दिया जाए। पश्चिम बंगाल के परिवहन विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 10,000 से ज्यादा टैक्सी ड्राइवरों ने अपने वाहनों को नए एंबेसडर मॉडल में अपग्रेड किया।

2013 में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार ने कॉमर्शियल टैक्सी कैब के मॉडल को बदलकर मारुति स्विफ्ट डिजायर कर दिया। ममता सरकार ने और भी बदलाव किए जैसे- टैक्सी का रंग पीले से बदलकर नीला और सफेद कर दिया।

पीली टैक्सियों के इस सफर को दूसरा झटका तब लगा जब 2015 में हिंदुस्तान मोटर्स ने घोषणा की कि उसने एंबेसडर का प्रोडक्शन बंद कर दिया है।Nehru Letters: नेहरू और लेडी माउंटबेटन एडविना के रिश्ते की कहानी

पश्चिम बंगाल सरकार के परिवहन विभाग के एक अफसर के मुताबिक, इस साल अगस्त तक 5,000 से ज्यादा पीली एंबेसडर टैक्सियां पहले ही सड़क से हट चुकी हैं और जल्द ही 2,500 टैक्सियों को हटाना पड़ेगा।

कुछ और बातें हैं जिस वजह से पीली टैक्सियों की संख्या कोलकाता की सड़कों पर नहीं बढ़ सकी। जैसे- इस कार में डीजल की खपत ज्यादा थी, डीजल के महंगा होने के साथ ही टैक्सी का किराया और इसके रखरखाव में आने वाले खर्च की वजह से कई टैक्सी ऑपरेटरों ने पीली टैक्सियों की ओर क़दम नहीं बढ़ाया। इन टैक्सियों को ऐप बेस्ड टैक्सी सर्विस से भी काफी चुनौती मिली।

टैक्सी संघ के नेता बोले- सरकार करे हमारी मदद

टीएमसी से जुड़े टैक्सी मालिक संघ के नेता शंभूनाथ डे ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “2013 से किराए में कोई बदलाव नहीं हुआ है। हम ऐप-बेस्ड कैब से प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार को यह समझना चाहिए और हमारी मदद करनी चाहिए।” उन्होंने राज्य सरकार से मांग की कि 15 साल पुराने वाणिज्यिक वाहनों को सड़कों से हटाने के फैसले की समीक्षा करे। हालांकि इस बारे में अब तक की गई सभी अपील बेकार गई हैं।मुस्लिमों की देश में बढ़ती आबादी का विश्लेषण

फिल्मों में भी मिली जगह

कोलकाता में इन पीली टैक्सियों की लोकप्रियता इतनी ज्यादा थी कि इन्हें फिल्मों में भी जगह मिली। 1970 के दशक में सत्यजीत रे की ‘कलकत्ता ट्रिलॉजी’ से लेकर अपर्णा सेन की 1981 में आई फिल्म ’36 चौरंगी लेन’ और 2012 में विद्या बालन सिने स्टार वाली फिल्म ‘कहानी’ तक में इन्हें दिखाया गया।

विद्या बालन जब इस महीने की शुरुआत में कोलकाता आई थीं तो उन्होंने मीडिया से कहा था,”कोलकाता के साथ कुछ इमेज जुड़ी हैं- ट्राम, हावड़ा ब्रिज, पुचका और पीली टैक्सियां।” बालन ने कहा था कि यह सोचकर उनका दिल टूट जाता है कि अब उन्हें कोलकाता की सड़कों पर पीली टैक्सियां देखने को नहीं मिलेंगी।

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